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ग़ज़ल ( वो यादें )

ग़ज़ल  ( वो यादें )

तन्हाइयों मे‌ घिर भी जाओ जो कभी तुम,मुझे याद करना,
उलझनो से होश भी खोने लगो जो कभी तुम,मुझे याद करना।

तुम्हारे वास्ते ज़माने  से सदा लड़ती रही हूं,
ज़माना हाबी  तुम पर हो जो कभी  तुम  मुझे याद करना 

रूठ कर तन्हाई दी तुमने मुझे,
मेरी यादों मे बिखरने लगो जो कभी,तुम मुझे याद करना।

वफ़ाओं से आज भी पाबन्द हूं मैं,
शिकवा मेरी वफ़ाओं से हो जो कभी,तुम मुझे याद करना

गुज़ारी हैं कितनी ही रातें मैंने तुम्हारी याद मे,
चांदनी रातें अगर देखो जो कभी,तुम मुझे याद करना

आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़

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6 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Sachin dev

06-Jan-2023 06:00 PM

Well done ✅

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Punam verma

06-Jan-2023 09:05 AM

Very nice

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